धा.) माहेश्वरी समाज एवं श्री सिद्धेश्वर महादेव तीर्थक्षेत्र का इतिहास

 (धा.) माहेश्वरी समाज एवं श्री सिद्धेश्वर महादेव तीर्थक्षेत्र का इतिहास


 लेखक-सीए. जयंत नागोरी पूर्व अध्यक्ष अखिल भारतीय (धा.) माहेश्वरी सभा

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माहेश्वरियों की उत्पत्ति के संबंध में शिवकरण जी दरक द्वारा लिखित कल्पद्रुम माहेश्वरी कुलभूषण नामक पुस्तक में उल्लेख है एवं वर्तमान में  माहेश्वरी समाज इसी ग्रंथ को प्रमाणिक मानता है. 

किवदंती है कि आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व 72 खापों के माहेश्वरी मारवाड़ डीडवाना में निवास करते थे. अपने धर्माचरण में रत् रहते हुए ईमानदारी पूर्वक व्यवसाय करते हुए सुखी जीवन बिता रहे थे किंतु तत्कालीन राजा जो अधर्मी था ,किसी कारण माहेश्वरी समाज  से कुपित हो गया एवं समाज के व्यक्तियों ने अन्यत्र बसने का प्रस्ताव पारित किया. 

अत: 72 खापों के माहेश्वरियो में से 20 खाप के परिवार अपना धन-धान्य से पूरित गृह त्याग कर धाकगढ (गुजरात) में जाकर बस गए. वहां का राजा दयालु, प्रजापालक एवं व्यापारियों के प्रति सम्मान की भावना रखने वाला था. उसके इन्ही गुणों से प्रभावित होकर 12 खापों के माहेश्वरी  भी वहां आकर बस गए एवं वचनबद्धता ही  उनकी पहचान बन गई. 


कालांतर में आवागमन की सुविधाओं के अभाव में मारवाड़ के डीडू माहेश्वरियो से इनका (धाकगढ़ निवासी) संबंध विच्छेद होता गया व धाकड़


माहेश्वरी कहलाने लगे. समयांतर से कुछ माहेश्वरी परिवार आजीविका चलाने हेतु अन्य स्थानों पर भी बसते गए और बसने वाले गांव के नाम से उनकी पहचान बनी जैसे डीडू, जैसलमेरी बीकानेरी, मेडतवाल ,पोकर ,टूंकवाले खंडेलवाल (माहेश्वरी ). इन समस्त माहेश्वरियों में पहले रोटी बेटी व्यवहार नहीं था परंतु धीरे-धीरे यह आपस में एक होते गए और आज इनमें रोटी बेटी व्यवहार प्रारंभ हो गया. अखिल भारतीय माहेश्वरी समाज के एक प्रस्ताव के अनुसार यह सब अपने नाम के आगे माहेश्वरी ना लिखकर अपना गोत्र लिखने लगे है. 

समय परिस्थितियों के वशीभूत धाकगढ़ के माहेश्वरियों को  धाकगढ़ छोड़ना पड़ा और वे वर्तमान आष्टा के पास अवंतीपुर बड़ोदिया गांव में विक्रम संवत 1200 के आस पास आकर बस गए. यहां उनके द्वारा निर्मित भगवान सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर जिसका निर्माण  सम्वत् 1272 में हुआ जो आज भी विद्यमान है और अतीत की यादों को ताजा करता है. ये लोग पुन: अन्य स्थानों पर जाकर व्यापार करने लगे. इसी प्रकार कुछ परिवार गुजराती नागर ब्राह्मणों के साथ मिलकर खंडवा व बुरहानपुर में बस गए, हमारे समाज की इन स्थानों पर बहुलता इस तथ्य से प्रमाणित होती है.

 श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर तीर्थक्षेत्र अवंतीपुर बड़ोदिया

हमारे समाज के ज्ञात इतिहास एवं कुल देवता के रूप में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर अवंतिपुर बड़ोदिया


में मंदिर निर्माण सम्वत् 1272 में (हमारे पूर्वजों


द्वारा) किया गया. तत्पश्चात् स्वर्गीय श्री परशुराम

सेवा राम चांडक खंडवा (सभा मंडप निर्माण), एवं स्वर्गीय श्री हजारीलाल जी तापड़िया पीपलरावा

(रामदरबार  विष्णु जी की मूर्ति स्थापना) स्वर्गीय खुशी लाल जी झंवर सेवदा ,स्वर्गीय श्री मिश्रीलाल जी प्रगट इछावर ,स्वर्गीय श्री अनोखी लाल नागोरी आष्टा, स्वर्गीय डॉ. छोगालाल जी झंवर हरदा(कुआ व 8 खंभों का निर्माण १९७०) मंदिर पुनर्निर्माण एवं प्राण प्रतिष्ठा 1996  में श्री छोगालाल झवर द्वारा एवं श्री सीताराम झवर सेवदा द्वारा राम दरबार एवं प्रतिवर्ष पोशाख सेवा की गई. 

सन 1996 के पश्चात मानस प्रचार समाज कल्याण समिति द्वारा मंदिर का रखरखाव किया जा रहा था. 

अब इस महान धरोहर को सहेजने का पुण्य कार्य समर्पित सदस्यों द्वारा किया जा रहा है और समाज ने वर्ष


२०१६-२०२२ की अवधि में इस प्राचीन

धरोहर को महान तीर्थ क्षेत्र के रूप में विकसित किया. 

श्री सिद्धेश्वर महादेव सेवा न्यास

कुलदेवता श्री सिद्धेश्वर महादेव तीर्थक्षेत्र एवं समाजसेवार्थ अखिल भारतीय (धा.)माहेश्वरी सभा द्वारा प्रवर्तित की गई है जो कि विधिवत पंजीकृत है. 


श्री सिद्धेश्वर महादेव तीर्थ क्षेत्र (धा.)माहेश्वरी की कर्मभूमि


अवंती जनपद के न्याय प्रिय सम्राट  प्रवर्तक विक्रमादित्य का परीक्षेत रहा है नदी तट पर अवस्थित प्राचीन टीले पर प्राप्त पुरातत्व साक्ष्य के आधार पर इसकी पुष्टि होती है.


अवंतीपुर बड़ोदिया की भूमि देवभूमि रही है जहां कि अनेक साधु संतों का समागम एवं

  विश्राम स्थल भी रहा जिसके साक्ष्य बिखरे पड़े हैं. महाराजा के माता हरसिद्धि पूजक होने के कारण यह सिद्ध क्षेत्र भी हरसिद्धि देवी का जागृत क्षेत्र है. विक्रमादित्य के काल में यहां अनेक मंदिरों का समूह था

काल के अंतराल में मालवा के शासक राजा भोज द्वारा मंदिरों का पुनर्निर्माण किया गया है. सिद्धेश्वर महादेव मंदिर उसी परंपरा के अनेक प्रतिमाओं के साथ दिखाई देता है

मंदिर जीर्णोद्धार के कारण वर्तमान स्वरूप में दिखाई देने लगा है. मंदिर पश्चिम मुखी ऊंची जगती पर निर्मित है

भूमि विन्यास में एक मुख मंडप महामंडल को सभागृह है मंदिर में जाने के लिए सीढियों का क्रमबद्ध सोपान निर्मित किया गया है ब्रह्मा विन्यास में दीदी बंद कुंभ कलश अंतर पत्र बंधन है इन बंधनों में अलंकरण से पुनर्निर्माण में इनकी पुनरावृति की गई है. 
चमत्कारी हनुमान
 चमत्कारी हनुमान की हाल ही में स्थापना की गई है

मालवा में मंदिर वास्तुकला के लेखक डॉ रामलाल कंबल ने अपने शोध ग्रंथ में इसका सुंदर वर्णन भी किया है प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिद्धेश्वर महादेव मंदिर तीर्थ क्षेत्र अवंतीपुर बड़ोदिया का मंदिर स्थापत्य तथा शिल्प कला का उज्जवल स्वरूप है अपने विशिष्ट लक्षणों के कारण भारतीय वास्तुकला के इतिहास में महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ परमार मंदिर शैली के विकास का महत्वपूर्ण सोपान प्रस्तुत करता है वर्तमान में (धा.)महेश्वरी समाज की यह धरोहर समाज के प्रयासों से महान तीर्थ क्षेत्र का रूप ले चुकी है एवं अपनी वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है. 


लेखक-सीए. जयंत नागोरी पूर्व अध्यक्ष अखिल भारतीय (धा.) माहेश्वरी सभा


आस्था की अनुगूंज सुप्रसिद्ध  पुस्तक के लेखक हैं


जय महेश ! जय सिद्धेश्वर महादेव !!